सीमा पर शक्ति स्वरूपा गुरन देवी

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सीमा पर शक्ति स्वरूपा गुरन देवी

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शाहजहांपुर बॉर्डर वही जगह है , जहाँ खाकी वर्दी पहने पुलिस ने गुजरात और राजस्थान से आये किसानों को दिल्ली जाकर धरना प्रदर्शन करने से रोक रखा है। सुप्रीम कोर्ट का आदेश है कि किसान शांतिपूर्ण ढंग से विरोध कर सकते है और सड़क पर यात्रा कर सकते है। इसके बावजूद हरियाणा सरकार ने राज्य सीमा पर घेराबंदी कर रखी है।

जब मैंने राजस्थान के मेवाड़ से आये हुए किसानों से बातचीत कर उनके मुद्दे जानने की कोशिश कर रहा था, उसी वक्त एक अच्छी कद काठी की सहज और सुंदर महिला तम्बू में आकर चुपचाप सबसे पीछे बैठ गयी। जब मैंने पूछताछ की तो क्या वो तम्बू में मौजूद लोगों में से किसी की पत्नी या मां है, तो मुझे यह जानकर बहुत आश्चर्य हुआ कि वह वहाँ अकेले थी। इससे ज्यादा आश्चर्य मुझे यह मालूम होने पर हुआ कि वह राजस्थान के नागौर जिले के मकराना तहसील के चुकरोझ गाँव से खुद अकेले आयी हुई है और इस मोर्चे पर 16 दिसंबर 2020 से मौजूद है।

मेरे पूछने पर उन्होंने बताया कि वह क्यों यहाँ अकेली है और क्यों कोई साथ में नहीं आया है। उन्होंने बताया कि वह बहुत ही दुःखी है। पर क्या करे? उसे मालूम नहीं है। क्योंकि उसे अपनी मूंग दाल की उपज को 3000 से 4000 रुपये प्रति क्विंटल से ज्यादा मूल्य नहीं मिल पाता है। जबकि  मूंग का बाजार मूल्य 7000 से 8000 रुपये प्रति क्विंटल है। उसे 1000 रुपये क्विंटल अपना बाजरा बेचना पड़ा। जबकि सरकार के द्वारा 1900 प्रति क्विंटल की न्यूनतम मूल्य की घोषणा कर रखी है। उन्होंने बताया कि राजस्थान सरकार उनकी उपज की खरीदारी नहीं कर रहीं है और खुले बाजार में उसे अपनी उपज का सही दाम नहीं मिल पाता है।

उसने चोट के निशान से हाथों और पैरों को दिखाते हुए बतलाया कि उनके गांव में जंगली जानवर से उनकी जान और फसल दोनों को जानमाल खोने का ख़तरा हमेशा बना रहता है। वह बताती है कि उनलोगों को दिन और रात में अपनी बारी बारी से अपने खेत-खलिहानों की रखवाली करनी पड़ती है। गुरन देवी ने यह भी बतलाया कि पिछले ही साल उनके बेटे का ऑपरेशन कराना पड़ा था, क्योंकि उसको किसी जंगली जानवर ने बहुत गंभीर रूप से घायल कर दिया था ,जब वह अपने खेत की रखवाली कर रहा था। अभी उसके हालत में धीरे धीरे सुधार हो रहा है और वह अभी अपने घर पर ही है। पर गुरन देवी ने मोर्च पर आने और रहने का निर्णय चुना।

पहले राजस्थान के लोग अपने मवेशियों को बेच सकते थे और उसे हरियाणा , पंजाब व उत्तरप्रदेश भेज सकते थे । पर सरकारी कानूनों के कारण अब किसी भी माल–मवेशी को तीन साल होने पर ही बेचा या किसी दूसरे जगह भेज सकते है। लेकिन तीन साल तक होते- होते मवेशी बूढा हो जाता है। अभी हालात ऐसे है कि हरेक गांव में लगभग 300 से 400 संख्या में मवेशी आवारा छोड़े हुए है। जो वक्त–बेवक्त उनके घरों और खेतों में तबाही मचाते हैं।

जब मैंने गुरन देवी से पूछा कि वे यहाँ कबतक यहाँ रहेंगी? तो उन्होंने बड़े आत्मविश्वास के साथ बोला कि जब तक केंद्र सरकार अपने निर्णय को वापस नहीं लेती है। तब तक वह वहीं आंदोलन के मोर्चे में बैठी रहेंगी। गुरन देवी 20 बीघे जमीन पर खेती करती है।

गुरन देवी का प्रधानमंत्री के नाम संदेश भेजा है। उन्होंने कहा है कि “ प्रधानमंत्री जी आपने कहा कि हमें प्रधानमंत्री आवास योजना के तहत हमारा घर बनेगा, पर हमें घर नहीं मिला। आपने प्रधानमंत्री जी कहा था कि हमें पीने का पानी मिलेगा और हमें पानी नहीं मिला। आपने हमारे फसलों का पूरा दाम मिलने का वादा किया था और आज हम अपनी फसल आधी दाम में बेचने को मजबूर है। आपने नोटबन्दी करके हमें बर्बाद कर दिया । आखिर ये सब बर्बादी कब तक रुकेगी ? “

लाल साड़ी पहने हुए गुरन देवी शक्ति और सच्चे बहादुरी का प्रतीक मालूम होती है। जो अपने आप को ,  अपने परिवार को और अपने किसान समुदाय को बचाने के लिए अपने पूरे ताकत से लड़ रही है।

उन्हें और उनके जैसी लड़ने वाली तमाम औरतों को मेरा सादर नमन !

Publisher

Trolley Times

Date

2021-01-05

Contributor

नवनीत चहल

Coverage

शाहजहांपुर मोर्चा

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