“मेरा रंग दे बसंती चोला, हो माए रंग दे”.......

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“मेरा रंग दे बसंती चोला, हो माए रंग दे”.......

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मैंने कभी कल्पना भी नहीं की थी कि ये मार्मिक देशभक्ति गीत का उद्घोष अपने ही देश के किसानों द्वारा अपने अधिकारों और अपनी ज़मीन की सुरक्षा के लिए सुनने को मिलेगा? ये अपने आप में एक ऐतिहासिक घटना है। मुझे गर्व है अपने देश के किसान समुदाय पर, जिन्होंने ये दिखाया कि किस तरह गौरव के जीना चाहिए और साथ ही कैसे एकजुट होकर उत्पीड़न के ख़िलाफ़ लड़ना चाहिए। उन्होंने ना सिर्फ़ एकजुटता, भाईचारे की भावनाओं को सिर्फ़ जीवित रखा, बल्कि एक अद्भूत संयम का भी परिचय दिया है।



शाहजहाँपुर सीमा, राजस्थान-हरियाणा की सीमा है जो गुड़गाँव से 60 किलोमीटर पर है, जहाँ किसानों को दिल्ली जाने से रोका गया है। यहाँ किसानों ने अपना अस्थायी निवास तम्बूओं और ट्रोल्लियों में बनाया हुआ है, और हर दिन इनका क़ाफ़िला बढ़ता ही जा रहा है। अभी इनकी संख्या 3000-5000 है जो कि सिंघु और टिकरी सीमा से काफ़ी कम कम है ।



सम्भ्रांत परिवारों से आने वाले लोग भी सड़कों पर साफ़ सुथरी अस्थायी टेंट बनाकर रह रहे है और जैसे-जैसे और किसानी जत्थे आ रहे है, सेवादारों की संख्या भी बढ़ रही है जो कि किसानों को खना, बिस्तर, गरम पानी, कपड़े, कम्बल और दवाईयों की सेवा दे रहे है। मैं ग्रामीण इलाक़ों से आने वाले इन लोगों के सेवा भाव से जितनी खुश हूँ, उतनी ही शहरी लोगों के व्यवहार से आहत भी हूँ जिन्होंने किसानों के आंदोलन के साथ कंधे से कंधा मिलाकर लड़ने में असफल रहा है। एक बार फिर शहरी और बुद्धिजीवी वर्ग ने जनता को निराश किया है। ये किसान ना सिर्फ़ अपने लिए बल्कि देश की जनता के लिए लड़ रहे है, जिन्हें इन कृषि क़ानूनों के चलते कई गुना महँगे दामों में कृषि उत्पाद ख़रीदने पड़ेंगे।



इन विरोध-स्थलों पर कई आधारभूत सुविधाओं जैसे - टॉइलेट, लाउडस्पीकर, बिजली और पानी का काफ़ी अभाव है जिसे धीरे-धीरे लोग अपने स्तर पर ठीक कर रहे है। जिस तरह देश-विदेश के नौजवान आकर यहाँ जिस जज़्बे से खड़े है वो तारीफ़ के काबिल है। उदाहरण में तौर पर मंजीत सिंह भूतर उर्फ़ डब्बू जिन्हें किचन किंग के नाम से जाना जाता है, जो दस लोगों के साथ ऑस्ट्रेलिया से आकर यहाँ सेवा में जुटें है।



आपको यहाँ कई तरह के देशी जुगाड़ मिलेंगे, जिसके माध्यम से मूलभूत सुविधाओं का निर्माण जैसे बिजली, चार्जिंग, तम्बू और पर्दों का बेहद रचनात्मक तरीक़े से किया जा रहा है। इतने संघर्षों के बावजूद बड़ी बात है यहाँ के युवा वर्ग का जोश, जो बुजुर्गों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर लड़ रहे है और इनका उत्साह अद्वितीय है। युवा पीढ़ी भगत सिंह के गीत “मेरा रंग दे बसंती चोला....” और उनके चाचा अजीत सिंह के नारा “पगड़ी सम्भाल जट्टा....” से ऊर्जा लेते हुए दिन-प्रतिदिन आंदोलन को नयी ऊँचाई दे रहे है।

Publisher

Trolley Times

Date

2020-12-26

Contributor

नवनीत चहल

Coverage

शाहजहाँपुर

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