1920 से 2020: हुकूमत से टक राता एक गाँव

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1920 से 2020: हुकूमत से टक राता एक गाँव

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मोदी सरकार के तीन कृषि बि लों के वि रोध में अगस्त में पंजाब से शुरू हुआ किसान आंदोलन अपने अगले पड़ा व में दि ल्ली सीमा पर पहुँ च गया है। चौथे हफ़्ते में पंजाब, हरियाणा और पश्चिमी उत्तर प्र देश के किसान दि ल्ली की टिकरी, सिंघु, और ग़ा ज़ी पुर सीमा पर डेरा डाले हुए है जबकि राजस्था न और गुजरात के किसानों ने राजस्था न-हरियाणा की शाहजहांपुर सीमा पर चक्का जाम किया हुआ है! सरकार इन बि लों के ज़ रिए कृषि क्षेत्र में कोर्पो रेट की सबसे बड़ी और सुनि योजि त घुसपैठ का रास्ता तैयार कर चुकी है जि समें 21वीं में भारत में खेती-किसानी के

काम को बड़ा धक्का लगा है! ग़ौ रतलब है कि इस आंदोलन को सिर्फ़ पंजाब का आंदोलन साबि त करने की पुरज़ो र कोशि श सरकार और गोदी मीडि या कर रही है, जि सके मूल में एक बात स्थापि त होती है जो किसान चुप है और किन्ही कारणों से सड़क ों पर नहीं उतर पाए है, उनकी चुप्पी को सरकार और मीडि या तीन कृषि बि लों का समर्थक मानने-बताने को आतुर है! इस दौर की यही सच्चा ई है! पहली बार नहीं है कि आपको वि रोध मुखर तरीक़े से करना होगा! वरना आपको सत्ता सीन ताकतों द्वा रा अपना समर्थक मान लिया जाएगा।

शहीद-ए-आज़ म भगत सिंह ने जि स तरह अंग्रेज़ी हुकूमत के बहरों को सुनाने के लिए असेम्बली में धमाका किया था, उसी वि रासत से निक ले पंजाब के किसानों ने सरकार- गोदी मीडि या के प्रो पेगेंडा के ति लिस्म को तोड़ ने के लिए पंजाब की सड़क ों को वि रोध प्र दर्श नों से पाट दि या है और अब यह दि ल्ली की चौखट पर दस्तक दे चुका है! इसे नज़ रंदाज़ करना अब सरकार-गोदी मीडि या के लिए नामुमकिन है। इस किसान आंदोलन को सिर्फ़ पंजाब का या/और इन कृषि बि लों को सीमि त करके नहीं देखा जा सकता है जि सकी कई वजहें है।

पहला, आज़ा दी के बाद देश को खाध्यां नों में आत्मनिर्भ र बनाने के लिए 70 के दशक में पंजाब में ग्री न रीवोल्यूशन के चलते फ़र् टिलायज़र्ज़ और पेस्टि सायड्ज़ ने पंजाब की ज़ मीन, पानी और लोगों को जि स कदर नुक़ सान पहुँ चाया है, जि सकी परिणिति “कैन्सर ट्रेन” और मायग्रेशन के रूप में हुई है। पंजाब ने देश को खाध्यां न आपूर्ति के चलते जो नुक़ सान झेला हो, उस पर बहुत कम बात होती है लेकिन उनकी अपेक्षाक ृत सम्पन्नता से सभी सरकार-मीडि या को रश्क हो रहा है! जब वि दर्भ का किसान दशकों से आत्महत्या कर रहा है तो देश की सत्ता और उनके पि छलग्गुओं की आँखों की कोर ना नम हुई! रिरियाते और हाथ फैलाते हुए किसान को देखने की आदत पाले हुए सत्ता धारियों को तनी हुई मुट् ठियाँ पच नहीं पा रही है।

दूसरा, यह आंदोलन हाल ही के किसान आंदोलनों जैसे 2017 में राजस्था न का किसान आंदोलन, 2018 में मध्यप्र देश का किसान, 2019 का महाराष्ट्र के किसानों का लाँग मार्च की कड़ी में देखा जाना ज़ रूरी है। ये सभी आंदोलन समग्र रूप से कृषि क्षेत्र में गह राते संकट और किसानों के ग़ुस्से के प्र माण है। आज की पीढ़ी के लिए पहला मौक़ा है जब इन आंदोलनों के ज़ रिए किसान अपनी आवाज़ इस स्त र तक बुलंद कर रहा है। कोरोना के चलते लगाए गए ग़ैर-ज़ रूरी लाक्डा उन और आर्थिक

मंदी के चलते अब गरीब मज़ दूर-किसान में हर जगह बहुत ग़ुस्सा है, लेकिन ऊपर बताए आंदोलनों ने इन ग़ुस्से को राजनैतिक सुर दि या है।

तीसरा, इस आंदोलन में पहले दि न से टोल प्ला ज़ा की घेराबंदी कर टोल फ़्री बनाना और अड़ा नी-अम्बा नी पर नि शाना साधकर किसान आंदोलन ने एक बेहतरीन दांव खेला है! सरकार की कोरोना के चलते आर्थिक नाकेबंदी के चलते हुई परेशानि यों के सामने इस नाकेबंदी ने सरकार-कोर्पो रेट का गठजोड़ की अकादमिक -बौद् धिक अभिव्यक् ति का आम जनमानस द्वा रा इस्तेमाल करना एक बड़ा राजनैतिक परिपक्वता का प्र माण है।

चौथा, इस आंदोलन ने देश में सत्ता के केंद्रीक रण और केंद्र -राज्य के रिश्तों पर भी बात हो रही है। मोदी सरकार के अलोकतांत्रिक रवैए ने जनता के बड़े हिस्से को बात-बेबात पर कट घरे में खड़ा दि या है जि समें अपनी जायज़ और सम्विधानसम्मत माँगो के चलते आपको एक नागरिक के बरक्स आपके धर्म , लिंग, क्षेत्र, भाषा और वि चारधारा के आधार पर सिर्फ़ इसलिए बदनाम-परेशान किया जाता है वे सरकार की ख़िलाफ़ त में है। सत्ता धारी पार् टी और देश के बीच इतनी पतली-धुंधली लकीर कभी ना रही, जैसी अब है! “इंदि रा इस इंडि या. इंडि या इस इंदि रा” के बाद ये पहला मौक़ा है जब सत्ता धारी दल, सरकार और उनके समर्थक ों की भीड़ गोदी मीडि या के साथ मि लकर डर का ऐसा मायाजाल रचा है, जि सके दम्भ पर इन्हें लगता है कि उन्हें लगता है कि वे हमेशा सत्ता में ही बने रहेंगे। हबीब जालिब के शब्दों में -

तुम से पहले वो जो इक शख़्स यहाँ तख़्त-नशीं था उस को भी अपने ख़ु दा होने पे इतना ही यक़ ीं था अब जब सरकार में इस दम्भ को तोड़ ने “नया किसान” आया है जो अपने हक़ की लड़ा ई आँख में आँख मि लाकर लड़ रहा है जि ससे पार पाने की तरकीब अभी तक सरकार नहीं सूझा पाई है। इस सरकार में कई आंदोलन हुए है, जि न्हें सरकार ने प्रॉ पगैंडा और स्टेट रेप्रेसन से दबा दि या है, या कुछ आंदोलन कुछ वक्त बाद ख़ त्म से हो गए। इस आंदोलन की सबसे खूबसूरत बात है कि किसान पूरी तैयारी- तसल्ली से बैठे है। हालाँकि आंदोलन के दौरान अब तक 30 से ज़्या दा किसानों की शहादत हो चुकी है लेकिन आंदोलनकारी इस सरकार के अड़ि यल रवैए से परिचि त है और वे इस लम्बे आंदोलन के लिए तैयार है। इस आंदोलन का भवि ष्य इस देश में ना सिर्फ़ खेती-किसानी बल्कि जन आंदोलन के तौर-तरीक़ ों और जान भागीदारी के नए समीकरण बनाने के लिह ाज़ से भी रोचक होगा। जि स तरह पंजाब के किसानों ने देश के किसानों को एक रास्ता दि खाया है, उम्मी द है कि राजस्था न, हरियाणा, उत्तर प्र देश, मध्य प्र देश और गुजरात की तरह और राज्य के किसान शामि ल होंगे और इस लड़ा ई को मुकम्मल अंजाम तक पहुँ चाएँगे!

Publisher

Trolley Times

Date

2020-12-25

Contributor

मुकेश कुलरिया

Coverage

बीकानेर

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